ऑपरेशन सिंदूर: पाक आतंक के खिलाफ ओवैसी, शशि थरूर की इंट्री

अजमल शाह
अजमल शाह

भारत अब आतंकवाद के मुद्दे पर सिर्फ कड़ी निंदा नहीं, बल्कि कूटनीतिक प्रतिकार की राह पर है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत केंद्र सरकार ने 5 देशों में सांसदों के 8 प्रतिनिधिमंडलों को भेजने की तैयारी कर ली है। इस ऐतिहासिक पहल का उद्देश्य पाकिस्तान की आतंकपरस्ती को वैश्विक मंचों पर उजागर करना है।

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5 देश, 8 प्रतिनिधिमंडल, 30 से अधिक सांसद

विदेश दौरे पर जाने वाले ये प्रतिनिधिमंडल 22 या 23 मई से 10 दिनों के लिए रवाना होंगे। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK), कतर, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में ये भारत का पक्ष मजबूती से रखेंगे।

हर प्रतिनिधिमंडल में 5-6 सांसद, विदेश मंत्रालय का एक अधिकारी और एक अन्य सरकारी अफसर शामिल होगा। इन सांसदों को सलाह दी गई है कि वे अपने पासपोर्ट व यात्रा दस्तावेज तैयार रखें, विदेश मंत्रालय उनसे संपर्क करेगा।

कौन-कौन हो सकते हैं शामिल?

सूत्रों के मुताबिक, प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी, कांग्रेस, TMC, JDU, DMK, NCP (SP), बीजद और CPI (M) के सांसद शामिल हो सकते हैं।

अब तक जिन प्रमुख नामों का सामने आना तय माना जा रहा है:

बीजेपी: अनुराग ठाकुर, अपराजिता सारंगी
कांग्रेस: शशि थरूर, मनीष तिवारी, सलमान खुर्शीद, अमर सिंह
NCP (SP): सुप्रिया सुले
AIMIM: असदुद्दीन ओवैसी

भारत का एजेंडा क्या है?

ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक संदेश है—दुनिया को बताने का कि पाकिस्तान की आतंकवादी नीतियों का खामियाजा सिर्फ भारत नहीं, बल्कि पूरी मानवता भुगत रही है।

 इन सांसदों का मकसद होगा—लोकतांत्रिक संवाद के जरिए वैश्विक समुदाय को भारत के दृष्टिकोण से अवगत कराना और समर्थन जुटाना।

 हर देश में रणनीतिक संवाद, मीडिया इंटरव्यू, थिंक टैंक मीटिंग और भारतीय प्रवासी समुदाय से संवाद प्रस्तावित है।

अभी तक क्यों नहीं आया आधिकारिक बयान?

केंद्र सरकार की तरफ से इस मिशन पर आधिकारिक बयान अभी नहीं आया है, लेकिन विदेश मंत्रालय ने आंतरिक रूप से सांसदों को सूचित करना शुरू कर दिया है। पूरी योजना को सुरक्षा, रणनीति और डिप्लोमेसी के नजरिए से बेहद गोपनीयता से तैयार किया गया है।

डिप्लोमेसी + डेमोक्रेसी = ऑपरेशन सिंदूर

इस पहल के जरिए भारत साफ संकेत दे रहा है कि आतंकवाद अब सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों का मुद्दा नहीं, बल्कि लोकतंत्र की सामूहिक जिम्मेदारी है।

ऑपरेशन सिंदूर भारत की नई कूटनीतिक रणनीति का प्रतीक है, जिसमें जनप्रतिनिधि अब वैश्विक मंचों पर देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। क्या यह रणनीति आतंक के पोषक पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा पाएगी? इसका जवाब आने वाले हफ्तों में मिलेगा—but one thing is clear—भारत अब चुप नहीं बैठेगा।

आशीष शर्मा ऋषि का विश्लेषण: 

जब संसद से सीधे डिप्लोमेसी की चौखट पर दस्तक होती है, तो सवाल सिर्फ विदेश नीति का नहीं, बल्कि राजनीतिक मंशा का भी होता है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’, नाम जितना काव्यात्मक है, रणनीति उतनी ही सियासी।

भारत सरकार आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता के नाम पर 30 से अधिक सांसदों को 5 देशों के दौरे पर भेज रही है—यह कूटनीति का नया मॉडल हो सकता है, लेकिन इसके पीछे कई परतें हैं।

पहला सवाल: क्या यह भारत की विदेश नीति में जनप्रतिनिधियों की निर्णायक भागीदारी का संकेत है?

अब तक आतंकवाद पर भारत का पक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश मंत्री या प्रधानमंत्री स्तर से सामने आता था। लेकिन इस बार लाइन में हैं—शशि थरूर, अनुराग ठाकुर, सुप्रिया सुले और… असदुद्दीन ओवैसी? यानी सरकार ने ‘एकता’ की मिसाल पेश करने की कोशिश की है।

यह तस्वीर अच्छी लगती है, लेकिन क्या यह वास्तव में मुद्दे को ग्लोबल मंच पर ले जाने की गंभीर पहल है या सिर्फ घरेलू मोर्चे पर “हम सब एक हैं” का प्रचारक पैकेज?

दूसरा सवाल: क्या 10 दिन का दौरा और थिंक टैंक मीटिंग्स पाकिस्तान पर दबाव बनाएंगे?

हम जानते हैं कि अमेरिका या UK जैसे देश आतंकवाद को लेकर डिप्लोमेटिक बयान तो दे देते हैं, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ कोई ठोस एक्शन लेने से बचते हैं। कतर और UAE जैसे देश खुद पाकिस्तान के साथ रणनीतिक साझेदारी में हैं।

तो क्या ये सांसद वहां जाकर भारत का दर्द रख पाएंगे या फिर ये मिशन NRI समुदाय को खुश करने और घरेलू मीडिया हेडलाइंस बटोरने का जरिया बन जाएगा?

तीसरा पहलू: क्या सभी दल इसमें वास्तव में एकजुट हैं?

इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने वाले नाम देखकर लगता है कि सरकार ‘बाईपार्टिज़न इमेज’ गढ़ना चाहती है। लेकिन अगर पाकिस्तान का मसला इतना गंभीर है तो अभी तक सरकार ने इस पर संसद में साझा प्रस्ताव क्यों नहीं लाया? क्यों नहीं विपक्ष को औपचारिक रूप से विश्वास में लिया गया?

यह पूरी कवायद कहीं विपक्ष को “सांकेतिक भागीदार” बनाकर सरकार की इमेज पॉलिश करने की कोशिश तो नहीं?

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की कूटनीति में एक नया प्रयोग हो सकता है, लेकिन यह प्रयोग कब ‘इवेंट मैनेजमेंट’ की कैटेगरी में चला जाए, यह लाइन बहुत पतली है।

सरकार को चाहिए कि इस प्रतिनिधिमंडल की पारदर्शिता, एजेंडा और नतीजे देश के सामने लाए—वरना यह मिशन भी उन्हीं खबरों में गुम हो जाएगा, जिनका हेडलाइन अच्छा होता है, लेकिन असर कम।

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